सोमवार, 24 जून 2013

सबसे ज़रूरी शर्त



दोनों हाथों से 
मैं पेट पकड़ कर 
भूख टटोल रहा था 
कल-परसो से नहीं
बरसों से 

न जाने तुम कब आए 
और मेरी छाती पर
लिख गए इन्कलाब 
  
बस उस दिन से
मेरे सवालात सिर्फ मेरे नहीं रहे
आसमान की लालिमा 
चेहरे पर उतर आई 
पेट को जकड़कर रखे हाथ 
मुट्ठी बन हवा में लहराने लगे 

फिर बारी आई कन्धों की
जहाँ झंडे फहराए गए 

सिर की, 
जहाँ टोपी लगाई गई 

आँखों की,
जहाँ सजाये गए 
बदले हुए कल के सामान 

मुँह की, 
जिसमें बारूद भरे गए 

छाती, कंधे, सिर और आँखों के बाद 
तुम ठहर गए 
मैनें तुम्हें अपना पेट दिखाया 
जो अभी भी खाली था 
और उपलब्ध भी
तुमने मुनासिब नहीं समझा 
इस संदिग्ध पेट को हाथ लगाना     

तुम जानते थे 
अच्छी तरह कि 
तुम्हारे बदलाव की लहर में 
मेरे पेट का खाली रहना 
सबसे ज़रूरी शर्त है 


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सुशील कुमार 
दिल्ली, 25 जून 2013

(तश्वीर : गूगल से साभार)

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