तुम ही तो थे जिसको माँ के गर्भ से
तलवार घोंपकर बहार निकाला गया था
कबाब के माफिक भुना गया था तुम्हें
याद है अख़लाक़ तेरह बरस पहले भी
मीनारों, मेहराबों और गगनचुम्बी पताकों में
दादरी सा मनहूस सन्नाटा पसर गया था
हाशिमपुरा, गुजरात, मुजफ्फरनगर,
मेरठ, त्रिलोकपुरी और बवाना से
तुम बच कैसे सकते हो अख़लाक़?
अभी तुम्हारी कब्र की खुदाई से
शायद सच्चाई साबित हो जाएगी
तुम्हारे पेट में पड़े मांस से
संभवतः कुछ सुराग मिल जाएगा
क्यूंकि तुम्हारे फ्रिज में रखा मांस
किसी काम का नहीं निकला
जब तक यह साबित न हो जाए
कि मंदिर के लाउडस्पीकर से जारी किया गया
मौत का फतवा बेवजह नहीं था
जाँच जारी रहेगी
जनतंत्र जैसे-जैसे भीड़तंत्र में तब्दील होने लगता है
तंत्र का भीड़ पर यकीन बढ़ने लगता है
इसी भीड़ ने संकल्प लिया है कि
तुम्हारे प्रियजनों को गाँव छोड़ने नहीं दिया जाएगा
इसी भीड़ ने तुम्हारे गाँव में
अमन बहाली का जिम्मा लिया है
इसी भीड़ से कोई उठता है
और तुम्हारे लिए कविता लिख रहे कवियों को
गाली देने लगता है
इसी भीड़ से कोई
फेसबुक पर गोली मरने की घमकी देता है
और मेरे आसपास बारूद की गंध बिखर जाती है
इसी भीड़ से कोई पूछता है
कौन है ये कलबुर्गी, पंसारे और दाभोलकर
इसी भीड़ से कोई हँसते हुए कहता है
साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों द्वारा
पुरस्कारों का लौटाया जाना साजिश है
मांस के लोथड़ों से लदे
अखबार के पन्ने भारी हो गए हैं
हेडलाईन्स चीख रहे हैं
और ऐसे में अखबारों से रिसता खून
जिनके दामन को दागदार न कर सका
उनके चारो तरफ जमा होने लगी है भीड़
तुम कब तक बचोगे अख़लाक़?
जनतंत्र में चुपके से जगह बनाता भीड़तंत्र
भीड़ और तंत्र का तुम्हारे खिलाफ नापाक षड़यंत्र है
जिसमें जन पर तंत्र भारी होता जा रहा है
और जो कलबुर्गी के लिए खड़े हैं
अगर भीड़ उन्हें अख़लाक़ न बना सकी
तो तंत्र उनके लिए यातना गृहों के दरवाजे खोल देगा
आखिर तुम कब तक बचोगे इस भीड़तंत्र में
ओ अख़लाक़?
______________
सुशील कुमार 05 नवम्बर, 2015
दिल्ली
सुशील कुमार 05 नवम्बर, 2015
दिल्ली
Hey keep posting such good and meaningful articles.
जवाब देंहटाएंHey keep posting such good and meaningful articles.
जवाब देंहटाएंसाधु साधु
जवाब देंहटाएं